Tuesday, March 26, 2013

इक रुका हुआ फ़ैसला

बहुत दूर चला गया था  आप से निकल के सोचा था की कभी नहीं लौटूंगा .... कभी नहीं .......चलता रहा ..... कभी थका तो ठहर के आराम किया ...... लेकिन पीछे देखा तो काँप गया .......भीड़ ........ ग़मों की, यादों की, जख्मों की , दर्द की , मिलने की , बिछुड़ने की ……. और हाँ ...धोखों की, अपनों की ......

आज भी जब सोचता हूँ तो नहीं समझ पाता  हूँ ...... की कैसे कोई साथ छोड़ देता है. ..... क्या ये संभव है.

नहीं ...नहीं जरूर संभव होगा तभी तो ऐसे वाकयात होते है।

लेकिन ......

नहि…… अब ये लेकिन के तीर अपने तरकस में ही रहेने दो.

और ज्योति….

मुस्करा के रह गया लेकिन बातों को मोड़ने के फन में तो  माहिर है.

मुझको जिन्होंने कत्ल किया है , कोई उन्हें बतलाये नजीर 
मेरी लाश के पहलू में वो अपना खंजर भूल गये. 

मतलब .......

ये लो ....

ये क्या है .....

खंजर .....है.

मुस्करा लेते हो .......इतने दर्द में भी ..?

अरे .... अपनों से भी कहीं दर्द मिलता है…। बोलो तो. अपनों से तो सौगातें मिला करती हैं .

और ये दर्द ....?

सौगात कहो ....पगले ..दर्द तो गैरों से मिला करते हैं .

क्या कोई गैर है तुम्हारे लिए ......?

नहीं ....इसीलिये  तो मुझे दर्द नहीं होता ...

तुम पागल होते जा रहे हो…।

लो .... यहाँ पर भी अपनी सोच को ठीक करो ..... जिसको तुम पागलपन समझते हो .... मुहब्बत के बाज़ार में इसको कीमत कहते है। .....

एक लम्हे में कटा है मुद्दतों का फासला, में अभी आय हूँ कुछ तस्वीरें  पुरानी देख कर. 

हाँ ...... मैं  इतेफाक रखता हूँ आप से.

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है, 
हम तो उसदिन राय देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे ...... 

सुनो ..... मैं एक एसोसिएशन बना रहा हूँ ......

एसोसिएशन ......????/

हाँ ....

कौन सी .....

आल इंडिया बेवफ़ा  एसोसिएशन .....

उनको मेम्बर बना लूँ ......

फिर पागलपन .....

क्यों ...... अब ऐसा क्या कह दिया मैंने .....

अरे .... वो तो इसके president  होंगे .....

फिर देर क्यों ....???

एक रुका हुआ फैसला है ..........

एक दिन तो होगा ही .....




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