Wednesday, March 27, 2013

इक आम आदमी..



मैं सच कह  रहा हूँ की मैं झूठ बोलता हूँ ...

हँसी आ गयी न ...... आनी  ही थी .....

कल एक शुभचिंतक से मुलाक़ात हो गयी ...... तो  उनका पहला स्वाभाविक सा सवाल ...कैसे हो ....

अब बताइए मैं क्या जवाब दूँ .......

तुरंत झूठ बोल दिया " ठीक हूँ, बढ़िया हूँ" आदि आदि   ....... अब अगर ये सवाल वो आदमी पूंछे  जिसे कुछ पता न हो .....तो मेरा जवाब उचित है लेकिन जब ये सवाल वहां से आया हो जिसको पूरा अंदाज है या अंदाज हो ....तो कोई हमे बतलाये की हम बतलाये क्या .....ये तो उसी तरह की बात हो गयी की किसी सोते हुए इंसान को जगा कर उससे पूंछे  " सो रहे थे क्या ?" अल्लाह ....अल्लाह .... ये अदा कैसी है इन हसीनो में .....

खैर छोडिये  इन बातों को अब आगे बढ़ते हैं .......

मेरी हालत तो ऐसी है की ....

मैं तो  ग़ज़ल  सुना के अकेला खडा रहा, 
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए .....

सब मगन हैं अपनी अपनी दुनिया में  ....

अच्छा एक सवाल  हूँ .......गुरु या ईश्वर जो सारे जग को प्रेम का पाठ पढ़ाता  है ....क्या वो ये कह सकता है की फलाने आदमी या फलाने इन्सान से दूरी रखो ......संभव है ? मेरे हिसाब से नहीं ......कदापि नहीं . गाने सुनने का शौक हो लेकिन घुंघरू की आवाज़ पसंद नहीं .....

इक पुराना गाना है ना ...

ऐ इश्क ये सब दुनिया  बेकार की बाते करतें हैं, 
पायल की धुनों का इल्म नहीं  झंकार  की बाते करतें हैं .....

मेरा ये आलेख किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं हैं। इसे  व्यक्तिगत तौर  पर ना लिया जाए ......इक आम आदमी का आम सा लेखन ...प्रेम .....जी हाँ प्रेम तो आज कल आम हो गया और मैं इक आम आदमी। 

Tuesday, March 26, 2013

इक रुका हुआ फ़ैसला

बहुत दूर चला गया था  आप से निकल के सोचा था की कभी नहीं लौटूंगा .... कभी नहीं .......चलता रहा ..... कभी थका तो ठहर के आराम किया ...... लेकिन पीछे देखा तो काँप गया .......भीड़ ........ ग़मों की, यादों की, जख्मों की , दर्द की , मिलने की , बिछुड़ने की ……. और हाँ ...धोखों की, अपनों की ......

आज भी जब सोचता हूँ तो नहीं समझ पाता  हूँ ...... की कैसे कोई साथ छोड़ देता है. ..... क्या ये संभव है.

नहीं ...नहीं जरूर संभव होगा तभी तो ऐसे वाकयात होते है।

लेकिन ......

नहि…… अब ये लेकिन के तीर अपने तरकस में ही रहेने दो.

और ज्योति….

मुस्करा के रह गया लेकिन बातों को मोड़ने के फन में तो  माहिर है.

मुझको जिन्होंने कत्ल किया है , कोई उन्हें बतलाये नजीर 
मेरी लाश के पहलू में वो अपना खंजर भूल गये. 

मतलब .......

ये लो ....

ये क्या है .....

खंजर .....है.

मुस्करा लेते हो .......इतने दर्द में भी ..?

अरे .... अपनों से भी कहीं दर्द मिलता है…। बोलो तो. अपनों से तो सौगातें मिला करती हैं .

और ये दर्द ....?

सौगात कहो ....पगले ..दर्द तो गैरों से मिला करते हैं .

क्या कोई गैर है तुम्हारे लिए ......?

नहीं ....इसीलिये  तो मुझे दर्द नहीं होता ...

तुम पागल होते जा रहे हो…।

लो .... यहाँ पर भी अपनी सोच को ठीक करो ..... जिसको तुम पागलपन समझते हो .... मुहब्बत के बाज़ार में इसको कीमत कहते है। .....

एक लम्हे में कटा है मुद्दतों का फासला, में अभी आय हूँ कुछ तस्वीरें  पुरानी देख कर. 

हाँ ...... मैं  इतेफाक रखता हूँ आप से.

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है, 
हम तो उसदिन राय देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे ...... 

सुनो ..... मैं एक एसोसिएशन बना रहा हूँ ......

एसोसिएशन ......????/

हाँ ....

कौन सी .....

आल इंडिया बेवफ़ा  एसोसिएशन .....

उनको मेम्बर बना लूँ ......

फिर पागलपन .....

क्यों ...... अब ऐसा क्या कह दिया मैंने .....

अरे .... वो तो इसके president  होंगे .....

फिर देर क्यों ....???

एक रुका हुआ फैसला है ..........

एक दिन तो होगा ही .....