Tuesday, August 28, 2012

शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो .....

शायद फिर इस जनम में  मुलाक़ात हो न हो .....

किस को ढूंढ रहा है तू .......देख न पैरों में  छाले  पड़  गए ....

नहीं ......नहीं ...... तू सुन मत .....चलता चल ........वो देख ..........कहीं वो तो नहीं ......

किस छलावे  में  जी रहा है ....... जो तेरा है वो कहीं जा नहीं सकता ..... जो तेरा है नहीं वो मिल नहीं सकता है

हाँ  ....... हाँ  .............. मैं जानता हूँ .........  अगर ये ग़लतफहमी मुझे ज़िंदा रखे है ..... तो मुझे ज़िंदा रहने दो ...
कुछ देर के लिए मैं अपने ग़मों से निजात पा लेता हूँ .......तो क्या गलत है ....

तो क्या यादें शराब हैं ........

उससे कम भी तो नहीं हैं .....यादें ............यही तो मन को डुबो देतीं हैं .......और यही डूबते हुए मन को सहारा भी  देतीं है ......

देखी  जो मेरी नब्ज , तो इक लम्हा सोचकर,
कागज उठाया और इश्क का बीमार लिख दिया।

उठ .....आनंद .........कईयों को इस इश्क ने बीमार बना दिया .......लेकिन .....तू नहीं ......तू नहीं ........

साबित कर कि .......इश्क ताक़त भी देता है ....हिम्मत भी ......जिन के सर  हो इश्क की छांव , पाँव के नीचे जन्नत होगी ....... जानता है न तू .........और मानता भी है ............

बदलने को तो इन आखों के मंजर कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम , हमारे गम नहीं बदले।
तुम अगले जन्म में  हम से मिलोगी तब तो मानोगी,
जमाने और सदी की इस बदल में  हम नहीं बदले।

कब तक दूसरों के लिए , दूसरों की तरह अपनी जिन्दगी जिएगा ......... जिन्दगी तेरी है .........

हाँ ....... जिन्दगी मेरी है ........लेकिन ......

जिदगी से बड़ी सजा ही नहीं,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं।
इतने हिस्सों में  बँट  गया हूँ में ,
मेरे हिस्से में  कुछ बचा ही नहीं।

अब समेट अपने आप को ..... वो देख कौन तेरा इंतज़ार कर रहा है .........

इधर उधर बहते हुए ...... टकराते हुए, बिखरते हुए, समेटते हुए, जिए जा रहा हूँ .... मैं।

जो बिछड़े हैं, फिर कब मिले है .....फिर भी तू इंतज़ार कर शायद ......

Saturday, August 25, 2012

तपस्वनी और फ़कीर................

पंडित बाल कृष्ण शर्मा......ओह.......नाम से तो मैंने आपका परिचय करवाया ही नहीं। तनिक याद करिए....तपस्वनी और फ़कीर .....के वो पंडितजी।....जी बिलकुल सही जगह पहुंचे है आप।.....उनका पूरा  नाम पंडित बाल कृष्ण शर्मा है।.......वृद्ध हो चले हैं।...उनकी बिटिया अंजलि बड़ी हो चली है।...गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ाती है।

बरसात अभी थमी है।.......मंदिर के बरामदे में  पंडित जी बैठे हुए कहीं खोये खोये से दूर आसमान में  देख रहे थे या कुछ सोच रहे थे।........लगता है कुछ पुरानी यादों ने फिर से करवट ली है।........

बाबा....लो चाय ले लो।

ला बिटिया।......

क्या सोच रहे हो बाबा।....

कुछ खास नहीं, बिटिया।........ याद है.... फ़कीर की।.....

.. बाबा.......सब कुछ याद है।

बिटिया वक़्त की सबसे ख़ास बात क्या है जानती है।.....

क्या......बाबा?

गुजर जाता है।.....अच्छा हो तब भी।....और बुरा हो तब भी।

हाँ।...बाबा। ये तो है।

एक बात और बिटिया।......ये वक़्त ही है जो अपने और पराये की पहचान भी करवा देता है। जब हम कामयाब होते हैं तब लोगों को पता चलता है की हम कौन हैं।..और जब हम असफल होते हैं तब हमको पता चलता है की हमारे दोस्त कौन हैं।.....

 काफी वक़्त बीत चुका है।....बहुत कुछ बदल गया ...हालात बदले, इंसान बदले।.......कुछ  इंसानों को हालत ने बदला , कुछ इंसानों ने हालातों को बदला......थोड़ा सा याद करने की कोशिश तो करो.......फकीर चला गया...आनंद ...यही नाम था न उसका......

क्या हुआ ....बाबा? आज अचानक फ़कीर बाबा की याद।......

हाँ।.....बिटिया ........आज राधा को देखा .....काफी समय बाद।........

उन्होंने तो मंदिर आना भी बंद कर दिया है बाबा।

कोई बात नहीं .....वो तो राधा है। तपस्वनी और फ़कीर................

ये क्या है तुम्हारे हाँथ में ......बाबा?.....ये तो डायरी लगती है।.....

हाँ बेटी।.......बिटिया।....थोड़ी सी चाय और डाल  दे गिलास में  ..........कुछ भारी पन  सा है सर  में ...

भूल जाना भी तो इक तरह कि  नेमत है फ़राज़,
वरना इंसान को पागल न बना दें यादें 
                                                               ...................................................................................चलने दें