आज थोड़ा सा वक़्त मिला था...तो पीछे मुड़ कर देखा.....कितनी दूर निकल गया हूँ...मैं.....कितनी दूर...रास्ते पीछे रह गए......शहर पीछे रह गए...मकान पीछे रह गए...लोग पीछे रह गए.....सब कुछ कितना बदल गया है....जो दिल वाले दोस्त थे..सब अमीर हो गए....अब कोई आँख किसी दूसरे के लिए आंसू नहीं बहाती....कुछ उजड़ गया..कल तक तो सब अपने ही थे.....हाँ..बिलकुल अपने....आज सब गैर...
कभी कभी सोचता हूँ.......तुमने सच ही कहा था...की आप पुराने ख्यालों के हो.....पिछडे हुए हो....लोग आप पर पैर रख कर आगे निकल जायेंगें.....और आप......सच कहा था तुमने....कभी कभी सोचता हूँ....
अरसा हो जाता है......अपने आप से मिलने की भी तो मोहलत नहीं देती ये दुनिया.....ओह....कंधे में कितना दर्द है.....नहीं ये किसी चोट का नहीं है.....जिम्मेदारी उठाते उठाते टूट गए कंधे.....लेकिन रुकने की आराम करने की इजाज़त नहीं है....चलते रहना है.....आराम करूँ तो कहाँ करूँ......कोई शजर भी नहीं नसीब है.....दो पल बैठ कर किसी के साथ अपने दिल की बात करूँ.....किस को इतनी फुर्सत..........सभी के पैरों में तो जिम्मेदारिओं के बेड़ियाँ पड़ी हैं.....खैर फिर भी अपनों के लिए वक़्त निकल जाता है.....T & C apply अपनों के लिए....अब ऐसे समाज में , ऐसी दुनिया में मेरे बसर कैसे होगा.......बोलो तो.......कभी कभी सोचता हूँ......
मुझे थकने की, आराम करने की ....... जरूरत भी नहीं...है...जब तक में दो सितारों को आसमान में नहीं सजा देता......मैं किसी की किस्मत में क्या लिखा है नहीं जानता.....इसीलिए अपनी तरफ से कोई कसर न रह जाए....और इस राह में थकना मन है......
तुमको याद है.....मैने काफी वक़्त पहले तुमसे अर्ज किया था.....उस से दूर रहना......चरित्रहीन है वो....याद है....मैं दूर की यात्रा पर अब निकल पड़ा हूँ....अब शायद न लौटूं ...............
कभी कभी सोचता हूँ...........
तुमने अपनों से अजनबी की तरह व्यहार करने का दर्द महसूस किया है.....देख कर अनदेखा करने का दर्द महसूस किया है.....किसी को जानबूझ कर avoid करने का अपमान महसूस किया है......
कभी कभी सोचता हूँ.....
चमक यूं ही नहीं आती है खुद्दारी के चेहरे पर
अना को हमने दो दो वक्त का फाका कराया है
कभी कभी सोचता हूँ.......तुमने सच ही कहा था...की आप पुराने ख्यालों के हो.....पिछडे हुए हो....लोग आप पर पैर रख कर आगे निकल जायेंगें.....और आप......सच कहा था तुमने....कभी कभी सोचता हूँ....
अरसा हो जाता है......अपने आप से मिलने की भी तो मोहलत नहीं देती ये दुनिया.....ओह....कंधे में कितना दर्द है.....नहीं ये किसी चोट का नहीं है.....जिम्मेदारी उठाते उठाते टूट गए कंधे.....लेकिन रुकने की आराम करने की इजाज़त नहीं है....चलते रहना है.....आराम करूँ तो कहाँ करूँ......कोई शजर भी नहीं नसीब है.....दो पल बैठ कर किसी के साथ अपने दिल की बात करूँ.....किस को इतनी फुर्सत..........सभी के पैरों में तो जिम्मेदारिओं के बेड़ियाँ पड़ी हैं.....खैर फिर भी अपनों के लिए वक़्त निकल जाता है.....T & C apply अपनों के लिए....अब ऐसे समाज में , ऐसी दुनिया में मेरे बसर कैसे होगा.......बोलो तो.......कभी कभी सोचता हूँ......
मुझे थकने की, आराम करने की ....... जरूरत भी नहीं...है...जब तक में दो सितारों को आसमान में नहीं सजा देता......मैं किसी की किस्मत में क्या लिखा है नहीं जानता.....इसीलिए अपनी तरफ से कोई कसर न रह जाए....और इस राह में थकना मन है......
तुमको याद है.....मैने काफी वक़्त पहले तुमसे अर्ज किया था.....उस से दूर रहना......चरित्रहीन है वो....याद है....मैं दूर की यात्रा पर अब निकल पड़ा हूँ....अब शायद न लौटूं ...............
कभी कभी सोचता हूँ...........
तुमने अपनों से अजनबी की तरह व्यहार करने का दर्द महसूस किया है.....देख कर अनदेखा करने का दर्द महसूस किया है.....किसी को जानबूझ कर avoid करने का अपमान महसूस किया है......
कभी कभी सोचता हूँ.....
चमक यूं ही नहीं आती है खुद्दारी के चेहरे पर
अना को हमने दो दो वक्त का फाका कराया है
1 comment:
दोराहो से गुजरती ज़िन्दगी की उहापोह
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