Wednesday, November 21, 2012

अकेले हम भी रहते हैं ....


वो जहर देता तो दुनिया की नज़र में आ जाता फ़राज़, 
सो उसने यूँ किया, वक़्त पे दवा न दी ....

आँखों में अश्क और होंठो पे हंसी .....

टूटा हुआ इक दिल और होंठो पे हंसी .....

पीठ पे ज़ख्म और होंठो पे हंसी .....

हालातों से लड़ना और होंठो पे हंसी .....

दर्द बर्दाशत भी करना है ...... और हँसना  भी .....

 .....बिलकुल फिल्मी कहानी का सीन है ......है न ......तो हम भी किस हीरो से कम हैं।

न राधा, न ज्योति, न अंजलि, न नैना ....  सब ख्याली किरदार थे ....चले गए।

 ...सब ऐसे छोड़ गए जैसे शमशान में अंतिम संस्कार करके लोग चले जाते हैं ......अच्छा लगता है

........ईद पे रूचि के घर पर  ज्योति को देखा था .......न नमस्ते, न दुआ , न सलाम .....जरा सी देर में क्या हो गया जमाने को ......

लेकिन अच्छे लोग तो फिर भी अच्छे ही लगते हैं ....फ़राज़।

तुमने तो देखा ही होगा की पानी को कोई रोक न पाया। .......वो अपने निकलने का रास्ता बना ही लेता है ....चाहे रिस रिस कर ही क्यों न निकले ..........

मत पूँछ की क्या रंग है मेरा तेरे  आगे,
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे पीछे .....

एक दीवानापन छा  गया है मुझ पर .......  इतनी चोटों  , इतनी घावों के बावजूद भी ज़िंदा हूँ ......पता नहीं कौन सी शराब पिला दी है मेरे मौला ने .....नशा सा छाया रहता है।

और इस नशे में मुहब्बत का नशा मिला दो तो ......... अल्लाह ...अल्लाह ....जैसे  भांग खाने के बाद किसी को मिठाई खिला दो .....

अच्छा लगता है अपनों से मिलना ......जो अब पराये से हो चले हैं ...

मुझे चेहरे पढने का हूनर आता है ..........उफ़ .....अल्लाह कितनी तकलीफ देता ये . कभी ये वरदान समझता था मैं .....अब तो मरा ...श्राप सा लगता है .....हाँ।

कितना बहलाऊं अपने आप को ....कैसे बहलाऊं .......

अरे ..............ये क्या फिर टूटने की तरफ .......नहीं ...तुमको इसकी इजाज़त  नहीं है .....  नहीं है।

अभी तुम्हरे गले पे जहर के नीले  निशाँ नहीं दिखाई पड़  रहे हैं ....अभी और गरल बाकी है .....

तुमको यादें सताती नहीं .......या तुम भी फ़राज़ बन गयी हो ....

भूल जाना भी एक तरह की नेमत है फ़राज़,
वर्ना इंसान को पागल न बना दे यादें ......

लेकिन ये यादें ही तो हैं जो डूबते हुए मन को सहारा भी देतीं हैं .......और कभी ये मन को अपने अंदर डुबो लेना चाहती हैं ......इन्हीं के बीच कभी डूबते , कभी उतराते , कभी जख्मों के दर्द बर्दाश्त करते करते ...चल रहा हूँ .....लेकिन ...

हमसफर होता कोई तो बाँट लेते दूरियां,
राह चलते लोग क्या समझें मेरी मजबूरियाँ .

मैंने खुद ही तो कहा था .....उससे ....

कभी जब अकेलेपन से घबराओ , हमे आवाज़ दे लेना,
अकेले हम भी रहते हैं ....

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