Friday, February 14, 2020

बारिश जोरों से हो रही थी और आनंद हाथ में चाय का गिलास लिए मंदिर के बरामदे में ही बैठ गया।  बरामदे में जलती हुई लालटेन की रौशनी और बारिश के पानी में एक अजीब सा सामंजस्य सा महसूस हो रहा था।  ऐसे में मन में विचारों के मानो पंख लग गए हों।  आज आनंद का अपने आप से सामना , न , न, न बातचीत करने का मन हो गया।  और जब अपने आप से बातचीत होती है तो उसको  सुनने के लिए कलेजा चाहिए होता है क्योंकि अक्ल कहती है दुनिया कि दुनिया मिलती है बाज़ार में, दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये। लीजिये ख़ुद से गुफ़्तगू का लुत्फ़ आप भी उठाइए , आप क्यों बचे रहें।

आनंद, क्या तुम एक दिल फेंक आदमी हो ? 

नहीं।

कोई जल्दी नहीं है आनंद , सोच के जवाब दो।  अपने आपको बचाने के लिए जवाब न दो।  और किससे बचाओगे ? ख़ुद  को ख़ुद से ?

नहीं नहीं ऐसा नहीं है। कई दिनों से मेरे अंदर भी ख़ुद को जानने की जद्दो -जहद चल रही है।  मैंने ख़ुद  भी कई बार पूछा क्या मैं दिल फेंक आदमी हूँ , तो यकीन मानो  जवाब नहीं में ही मिला। 

फिर ?

फिर ... पता नहीं।  और जो मैं अपने आप को समझता हूँ उसको हर्फ़ों में बांधना।  बहुत मुश्किल है।  और अगर मैं कहूँ कि मुश्किल नहीं तो अगर सफ़ों पे लिखूँ  तो कोई यकीन नहीं करेगा।  हाँ सच में यकीन नहीं करेगा। किसी चीज़ की तलाश, किसी चीज़ की जुस्तजू मुझे यहाँ से वहाँ , इस शख़्स से उस शख़्स तक घुमाती रही शायद।  मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा।  प्रेम , प्यार , मुहब्बत ये लफ्ज़ बहुत बार सुने, कई बार कहे लेकिन सच कहूं ये नहीं समझ में आया कि मुहब्बत है क्या। 

तसव्वुर में कोई रहता है लेकिन वो कौन है  , ये समझ में नही आया। तबियत कुछ ढूंढती है लेकिन क्या , नहीं मालूम।  एक चेहरा साथ साथ रहा पर मिला नहीं , किसको तलाशते रहे कुछ पता नहीं।

क्रमश:

Wednesday, January 29, 2020


अरे बातों बातों में वक़्त कितना निकल गया पता ही नहीं चला। घड़ी देख चौंकते हुए आनंद ने कहा। बिजली चमक रही है लगता है बारिश होने को है।  अब चलूँगा।  माता जी अभी आज्ञा दीजिये आप भी गंगा। और हाँ सेवक काका से कह दीजियेगा मंदिर में भूत नहीं मैं रह रहा हूँ फ़िलहाल। 

एक ठहाका सबका। 

भूत कैसा भूत ? माता जी का स्वाभाविक सा सवाल।  स्वाभाविक यूँ कि उनको पिछली बातों का ज्ञान न था जो सेवक काका से हुई थीं , यहाँ आते वक़्त।

गंगा ने साड़ी बातें संक्षेप में माता जी को बता दीं। 

अरे वो मुआ किस भूत से कम  है।  माता जी सीधा सा संवाद।

आनंद घर से निकल पड़ा १०० कदम भी न गया होगा की पीछे से किसी ने कंधे पर  हाथ रखा।

कौन है !!!

मुड़कर देखा तो गंगा।  डर गए न।  लीजिये छाता लेते जाइये बारिश के आसार हैं और हाँ वापस देने खुद ही आइयेगा।

छाता ले आनंद चल पड़ा आगे।  वो इतना तेज चल रहा था की जैसे वाकई डरा हुआ हो। 

अरे आनंद बाबू !!! एक स्वर कानों से टकराया।

दाईं तरफ मुड़  के देखा तो किशोर था।  किशोर माने पान की दूकान वाला। 

अरे किशोर तुम यहां। आज दूकान बंद है।

हां बाबू आज जल्दी बंद कर दी मौसम खराब है कहीं झड़ी लग गयी तो घर तक पहुंचते पहुँचते छपर छपर हो जायेगी हालत।  जेब से चुरुट का पैकेट निकाल कर आनंद से कहा " लो बाबू आज शाम आप आये नहीं और मुझे जल्दी निकलना था, सो सोचा की मंदिर जा कर दे दूँ , वहां पता चल की आप गंगा बिटिया के साथ गए हो, सो इधर से निकल रहा था की कहीं रास्ते में टकरा गए तो डिब्बी आपको दे दूँ।

अरे किशोर इतनी तकलीफ उठाने की क्या जरुरत थी? भाई तकलीफ के लिए माफ़ी। 

अच्छा दखो बूंदाबादी शुरू हो गयी है।  तुम भी चलो और मैं भी।  और हाँ इसके पैसे कलआकर  दे दूंगा।

ठीक है बाबू।

मंदिर के बरामदे में पहुँच कर घड़ी देखी अरे बाप रे २५ मिनट लग गए।  दूर तो है। 

कुर्ता उतार खूंटी पे टांग दिया और लालटेन की लौ थोड़ी बढ़ा दी।  आनंद दीवार का सहारा ले मंदिर के बरामदे में बैठ गया और बारिश देखने लगा।  हवा में झूमते चीड़ के पेड़।  एक अजीब सा उल्लास , एक अजीब सी ख़ुशी।  लेकिन सब कुछ सुंदर बहुत  सुंदर। पहाड़ों में अन्धेरा जल्दी हो जाता है रात देर से होती है। पहाड़ खींचते हैं आनंद को अपनी ओर।  वो यहाँ आता है अपने आप से भाग कर नहीं।  कहीं आप ये राय न बना लें कि अपने आप से भागकर , जिम्मेदारियों से भाग कर यहाँ रह रहा है।  न ऐसा कुछ नहीं है। 

टाइम ज्यादा नहीं हुआ था करीब ८:३० बजे थे बारिश भी धीमी हो चली थी। 

आनंद बाबू ऊपर वाले ने आज खाना तो अच्छा खिलवा दिया लेकिन चाय का इंतज़ाम तो खुद ही करना पड़ेगा प्यारे।  वो उठा और चाय बनाने के लिए चूल्हा जलाया , पानी भी चढ़ा दिया।  चाय का गिलास लेकर वो फिर बरामदे में आकर बैठ गया।    
    


Friday, January 24, 2020


हम्म्म , बात तो आप ठीक कह रहे हैं। 

हां और मेरी बड़ी तमन्ना है गंगा की हमारे बच्चे पढ़ने की आदत डालें। 

बात तो सही है आनंद लेकिन एक बात है।

क्या ?

वातावरण , घर का वातावरण , परिवार का वातावरण।

हम्म्म , सही है गंगा , वातावरण तो मुख्य है।  तो क्या करें बताओ।

लीजिये घर आ गया।  आइये अंदर आइये।

आ गयी बेटी तू।  गंगा की माँ का स्वर।

हाँ माँ , इनसे मिल।

अरे आनंद जी।  माँ जी का स्वर पुन:

अब तू पूछेगी अरे माँ  तू जानती है इन्हें।  है न।

हाँ वो तो स्वाभाविक है। तू जानती है इन्हें ?

और आनंद जी आप भले ही कुछ बोल या पूछ न रहे हों लेकिन बेटा तेरी आँखें यही पूछ रहीं हैं। 

बैठ। 

गंगा और आनंद दोनों बैठ गए। 

माँ तू कैसे जानती है ?

अरे ये पुराने वाले शिव मंदिर में रहते हैं।  हैं न आनंद।

हाँ माँ जी। 

अरे इतनी हैरान परेशान करने वाली कोई बात नहीं है।  मंदिर के पास जो हाट लगती है , वहाँ गयी थी तो रामेसर की बहु भी साथ थी।  उसका बेटा पढ़ने जाता है इनके पास। उसी ने बताया था , हाट करने के बाद वो सुनील को लेने मंदिर गयी इनके पास तो मैं  भी साथ थी , वही देखा था।  मधु बता रही थी की बस ध्यान में बैठे रहते हैं।  कई दिन तो उसने  खाना भी भिजवाया है।  स्वामी जी को।  माँ हँस पड़ी। 

हाथ मुंह धो ले चाय बन गयी है। 

चाय !! अभी तो घर में घुसे १० मिनट भी न हुए तूने चाय भी बना ली !!!

हाँ मुझे मालूम था की तुम लोग आ रहे हो। 

अच्छा !!! अब ये किसने बताया तुझे।  गंगा का सवाल माँ से।

सेवक राम जी ने बताया होगा , जवाब आनंद का

सही जवाब ! माँ की स्वीकारोक्ति।

तीनो खिलखिला के हँस पड़े।  
  
 ले चाय ले।  तू गिलास में चाय पी लेगा न?

जी शौक से।

माँ कुछ खाने को लेने चौके में चली गयी।

आनंद हमारे यहां पहाड़ में तू करके बात करते हैं।  इसलिए बुरा न मानियेगा माँ आपको तू कह के सम्बोधित कर रही हैं। 

जी नहीं मानूँगा। बिलकुल नहीं मानूँगा , कतई नहीं मानूँगा। लेकिन आप की जानकारी के लिए बता दूँ कि मेरी पैदाइश पहाड़ की है और schooling भी।  अत: हे गंगे मुझे पहाड़ संस्कृति , रीति - रिवाज़ थोड़े बहुत पता हैं। 


Thursday, January 23, 2020


सेवक काका , हँसी मजाक अपनी जगह लेकिन मुझको ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हुआ इसके उल्टे मुझे तो बहुत शांत जगह लगी वो। 

ठीक है आनंद बाबू , आप लोग शहर के पढ़े लिखे लोग हैं , आप ज्यादा उचित समझते हैं।  अच्छा मुझे आज्ञा दीजिये।  राम - राम गंगा बिटिया। 

और सेवक काका सीधे जा कर दाएं मुड़ गए।

अच्छा गंगा , अब मैं भी चलूँगा। 

अरे घर जाने का तय हुआ था और खाना वही खा कर आप जाएंगे। ये गंगा का आग्रह था या आदेश , आनंद यही नहीं समझ पा रहा था।  यदि ये आग्रह था तो इतना वास्तविक था कि उसको मना करने का साहस नहीं था और यदि ये आदेश था तो एक अधिकारपूर्ण आदेश था।

आनंद गंगा की तरफ देखता रहा फिर कहा - इस सादगी पे कौन न मर जाए ए ख़ुदा , लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।

अच्छा तो जनाब शायरी में भी दखल रखते हैं। 

नहीं दखल - वखल कुछ नहीं , बस ऐसे ही कुछ याद रह जातीं हैं.

पढ़ना -पढ़ाना आपकी हॉबी है क्या ?  आनंद का सवाल

हाँ , मुझे अच्छा लगता है।  क्योंकि आजकल के समय में यह एक आदत है जो हमको टाइम पास के साथ - साथ मेंटली enrich कर देती है , ऐसा मेरा सोचना है।  क्या ऐसा नहीं है?

नहीं - नहीं मैं इत्तेफाक रखता हूँ आपसे और यह बहुत सही एप्रोच है।  लेकिन एक बात है गंगा।

क्या?

आजकल हम सब में - बच्चे , बूढ़े और जवान सब किताबों से पढ़ने की आदत से दूर होते जा रहे हैं और ये मेरे लिए एक चिंता का विषय है।

सो तो है।

क्या हम इस आदत को वापस लाने का प्रयत्न कर रहे हैं ? या कर सकते हैं?

आनंद , बहुत माक़ूल बात है और बहुत माक़ूल सवाल।  लेकिन इस इंटरनेट ने किसी को अछूता नहीं छोड़ा है।  ये तो मानते हैं न आप।

न मानने का तो प्रश्न ही नहीं है, गंगा।  लेकिन एक बात कहूं - इंटरनेट पे लोग भगवान् के दर्शन भी कर सकते हैं, on line दान दक्षिणा भी दे सकते हैं, भजन कीर्तन भी सिन सकते हैं और यदि समय हो तो यू tube पर उसको चल कर उसमें शिरकत भी फरमा सकते हैं।  है न?

हाँ वो तो है।

लेकिन फिर भी भगवान् दर्शन के लिए मंदिर ही जाते हैं चाहे कितनी दूर हो या कितना पास। ऐसा क्यों?  


Wednesday, January 22, 2020

बात करते करते दूरी काफी तय हो गयी थी। 

अरे गंगा बिटिया

सेवक काका। नमस्ते , कैसे हैं आप ?

काका इनसे मिलिए ये हैं आनंद।

अरे अरे आनंद बाबू।  नमस्ते

बिटिया ये  वही हैं न जो पुराने वाले शिव मंदिर ें रहते हैं। 

हाँ काका। 

अरे आनंद बाबू , बड़े हिम्मत वाले हैं आप हो उस खंडहर मंदिर में रहते हैं।

क्यों ऐसा क्यों ? काका

अरे आनंद बाबू उस मंदिर को छोड़ो , सूरज ढलने के बाद तो उस तरफ भी कोई नहीं जाता। 

लेकिन क्यों काका ??

अरे भाई सुना है वहां भूतों का निवास हो जाता है।

अच्छा !!!

लेकिन काका २ महीने से मैं रह रहा हूँ , कोई मुझसे मिलने नहीं आया।  आनंद का जवाब सेवक काका को।

क्या करते मिलने आकर जब उन्होंने देखा होगा कि उनसे बड़ा वहाँ रह रहा है।  गंगा का जवाब आनंद को। 






Tuesday, January 21, 2020

 तो आप भी यहीं रह जाइये , गंगा का एक मासूमियत सा जवाब।

जी रह तो जाता लेकिन वहशीं को सुकूँ से क्या मतलब, जोगी का नगर में ठिकाना क्या। 

ओह तो आप जोगी हैं !!

अरे जोगी जी धीरे - धीरे , सामने पड़े बड़े से पत्थर से बचने की सलाह देते हुए गंगा ने आनंद से इक ठिठोली की। 
आनंद  गंगा की तरफ देखा कर मुस्करा पड़ा। 

O , hello श्रीमान जोगी जी ऐसा क्या कह दिया मैंने जो श्रीमान को हंसी आ गयी।  भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा , बाई गॉड। 

अरे नहीं गंगा जी !!!

क्या नहीं गंगा जी ! हमारी समझ में नहीं आता है क्या? ये शहर वाले पता नहीं अपने आप को क्या समझते हैं ! अपने आप को क्या समझते हैं, मेरी बला से लेकिन हम लोगो को बेवकूफ जरूर समझते हैं।

तुम रायते की तरह फ़ैल क्यों रही हो।  गंगा की भाषा में आनंद ने गंगा से पूछा। 

तो आप हँसे क्यों ?

अरे तो हँसना अपराध हो गया , उईईई मेरी अम्माँ। 

आनंद के इस जवाब पर गंगा हंस पड़ी। 

गंगा आप कब से इस स्कूल में पढ़ा रहीं हैं ?

२ साल हो गए। 

सरकारी स्कूल है ?

जी।  कौन अम्बानी या अडानी यहाँ  स्कूल खोलेगा ?

हम्म्म्म ये तो है।

लेकिन पढ़ना पढ़ाना मुझे अच्छा लगता है , एक सुख की अनुभूति देता है ये पेशा मुझको।  मैं जब किसी बच्चे को देखती हूँ तो ये विचार कौंधता है मेरे ज़हन में कि मैं इसकी भविष्य की निर्माता हूँ।  वो ठीक है हर बच्चा अपनी किस्मत लेकर आता है , वो स्वयं ही भविष्य का  है लेकिन जिस उम्र उसके मां -बाप स्कूल में हमारे पास छोड़ के जाते हैं तो उनकी भी कुछ तो उम्मीदें होती होंगी।  कुछ तो सपने होते होंगे उनके भी।  और उस उम्र का बच्चा कच्ची मिटटी की तरह होता है , जिस रूप और आकार में गढ़ दो , वो वैसा ही बन जायगा। 

Friday, January 17, 2020

कारण ! कारण ! कारण !

जिंदगी cause and effect ही है या इन्हीं पे चलती है। 

क्योंकि बादल आये इसलिए बारिश हुई।

क्योंकि उसने बुरा किया इसलिए उसका बुरा हुआ।

दुनिया में आये हैं तो जीना ही पड़ेगा।

नहीं गंगा मैं २ महीने से मंदिर में रह रहा हूँ तो इसलिए नहीं मैं किसी चीज़ से भाग रहा हूँ  या भाग कर यहाँ हूँ। ऐसा नहीं है।  शहर की भाग दौड़ , जिम्मेदारियों का बोझ , कुछ इधर की कुछ उधर की इन सब के बीच हम खुद को खो देते हैं हाँ सच में हम खुद को खो देते हैं. हम ये भूल जाते हैं की हम भी कुछ हैं , हम को अपने लिए भी जीना चाहिए।  खुद को भी वक़्त देना चाहिए।  स्वयं सेवा बहुत जरुरी है अगर किसी और की या औरों की सेवा करनी है।  वो क्या है न-

अक्ल कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में ,
दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिये। 

तो बस यूँ समझ लो की दिल की सुन लेता हूँ और स्वयं से सम्पर्क स्थापित करने , उसको सुचारु रूप से चलने देने के लिए , खुद से मुलाक़ात करने के लिए यहां आता हूँ।  प्रकृति के साथ भी अपना सामंजस्य खूब बैठता है। 

बात करते करते दोनों कितनी दूर निकल आये ये पता ही नहीं चला।  जब तक कानों में मंदिर से आ रही आरती की आवाज़ नहीं पड़ी।

लेकिन गंगा आप से ईर्ष्या होती है। 

मुझसे !!! वो  भला क्यों ?

ये जगह जहां आप रहती हैं , ये हरे भरे पहाड़, ये चीड़ के पेड़ों के जंगल, ये बुरांस के फूलों के जंगल , वो देख रही हो झरना , और ये गदेरा !!!! कुदरत ने दामन भर दिया है।  

Thursday, January 16, 2020

क्या लेकिन आनंद ? गंगा का सवाल

आनंद २ मिनट खामोश रहा। 

मैंने कुछ पूछा आनंद। 

हाँ सोच रहा हूँ किन किन लेकिन को गिनाऊँ , किन किन लेकिन का जवाब दूँ।  अच्छा चलो यूँ कर लेते हैं।

क्या कर लेते हैं ? By the way

फ़िक्रे दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये बवाल कहाँ। 

मुझे लग रहा था की आप सीधे सीधे जवाब नहीं देंगे। 

वैसे मैं आपको एक बात बताता चलूँ की गंगा से ये मेरी ग़ालिबन पहली मुलाक़ात है लेकिन बात ऐसे कर रहें हैं की पुरानी आशनाई है लेकिन ये भी नहीं लगता की पहली बार मिले।  गोया ये ज़रूर है की नाम से एक दूसरे से आशनाई ज़रूर थी।  मंदिर में बच्चों को पढ़ाते पढ़ाते गंगा का नाम सुना था और ग़ालिबन इसी तरह उन्होंने ने मेरा।  बकौल बशीर बद्र साहब "गुफ़्तगू उनसे रोज़ होती है , मुद्दतों सामना नहीं होता"।

क्या सीधा जवाब दूँ ? और सीधा जवाब कोई हो भी तो। 

आप मंदिर में कब से रह रहे हैं ?

२ महीने हुए।

यहाँ भी उसी कारण आये हैं ?

कौन सा कारण ? ओह वो।  मैं अगर न कहूं तो गलत होगा। 



Tuesday, January 14, 2020

क्या है यार !

क्या है ये जिंदगी।  नहीं नहीं कितने बंधनों में बंधी है ये जिंदगी। 

नहीं नहीं बंधी नहीं , मैंने खुद बाँध राखी है। 

मन करता खुल कर जीने को , खुल कर उड़ने को , जो करना चाहता हूँ , वो करने को , पढ़ने को, लिखने को दौड़ने को भागने , पहाड़ में जाने को

लेकिन

क्या लेकिन आनंद ?