Friday, December 12, 2014

आप की कसम।




कब वो सुनता है कहानी मेरी,
और फिर वो भी जुबानी मेरी .....

बात करने से बात बढती भी है , बात साफ़ होती है भी है और बात से बात निकलती भी है .....इसीलिए तो कहा है ....बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी .....मानो या न मानो।

तुमने पूंछा  था की क्या मैं नाराज़ हूँ .....?

नहीं नाराजगी किस बात की ..... हाँ अफ़सोस जरूर हुआ और है भी .....क्योंकि मैं तुमको एक अलग पैमाने पर देखता था, कईयों से अलग, कईयों से जुदा। मेरी सोच। या तो मैं भी    की तरह सोचना शुरू कर दूं ...या जो मेरी मौलिक सोच है उसको बरकरार रखूं। दुनिया की भेड़ चाल में चलना ....मेरे बस का नहीं।

जब भी डूबे तेरी यादों के भंवर में डूबे, 
ये वो दरिया है जो हमें पार न करना आया।

लेकिन बशीर बद्र का वो जो शेर है :-

कुछ तो मजबूरियाँ रही होगीं,
यूँ ही कोई बेवफ़ा  नहीं होता .....

और जब तक मैं सच्चाई की तह तक न पहुँच जाऊं , कोई राय या कोई धारणा बना लेना गलत होगा। और मेरा ये firm belief है की सच एक न एक दिन सामने आ जाता है और झूठ के पाँव नहीं होते।  और जब तक सच सामने नही  आ जाता  तब तक बर्दाशत करना। यही समझदारी है। दुनिया ने ही सीखाई है ये समझदारी .......
एक न एक दिन जरूर आएगा जब जमाना हमको ढूँढेगा, न  जाने हम कहाँ होंगे।

हाँ ये जरूर सोचता हूँ कि  कहाँ गयी तुम्हारी अपनी शख्सियत , तुम्हारी अपनी एक individual personality. मनुष्य ईश्वर  की सर्वश्रेष्ठ कृति है है ......ऐसा सुना है  और मानता भी हूँ .....

दुनिया को ये कमाल भी कर के दिखाइए ,
मेरी जबीं पे अपना मुकद्दर सजाइए।
लोगों ने मुझ पे किया हैं जफ़ाओं के तजुर्बे,
इक बार आप भी तो मुझे आजमाइए।

तुम मुझको जितना या कितना जानती हो ...ये तो पता नहीं , लेकिन इतना तो जानती  होगी की मैं उनमें से नहीं हूँ जो तुमको शर्मसार करे या रुसवा ....

बाकी तुम्हारी सोच और तुम्हारी मर्जी .........इसके आगे और क्या बोलूं ..... तुम्हारी आज भी वही इज्ज़त है और वही स्थान है मेरे दिल में जो था ....हम किरायेदार बदलते नहीं ....बस  इतना है की ..

गिरता है अपने आप पर , दीवार की तरह, 
अंदर से जब चटकता है, पत्थर सा आदमी।.

आप की कसम। 

मेरा क्या...


आज दो दिन हो गए.... लेकिन आनंद का कुछ पता नहीं....कह के गए थे की दूसरे दिन ही आ जायेंगे. आज मन कुछ खराब है....कुछ उदासी... इस वक़्त आनंद की जरुरत है मुझको........

दीदी.... ये तार आया है. .

तार.....किसका तार. तार के नाम से आज भी मेरे गाँव वाले और में भी काँप जाते हैं....पता नहीं क्या खबर आई है.

लाओ काका....यहीं कमरे में दे दो.

लो दीदी..... तबीयत ठीक नहीं है क्या.....?

हाँ काका....कुछ ढीली है.

किसका तार है बिटिया.......माँ कमरे में घुसीं.

आनंद का.....

क्या हुआ...... सब ठीक तो है ना...?

हाँ ठीक हैं.....लिखा है...की कल दोपहर तक आउंगा. काम नहीं हुआ है अभी.

कौन सा काम....बेटी...?

क्या पता माँ...मुझे भी सारी बाते कहाँ बताते हैं........

तू जाने और आनंद जाने.....चाय पियेगी...मैं बना रही हूँ.

दे दो.....माँ....आधा कप.

पूरी बात ना बताने की आनंद की आदत,  ना जाने कब जाएगी. झूठ बोलते नहीं  हैं....सच बताते नहीं हैं. किस काम से शहर  गए हैं... भगवान् जाने. दीनानाथ से पूंछू .... लेकिन क्या ....की आनंद किस काम से शहर गए हैं....? अगर उनको पता चल गया...की मैने पूंछा था..... तो बुरा लगेगा....उनको. खैर....कल तो आ ही रहे हैं. लेकिन मैं आनंद ही आनंद के बारे मैं क्यों सोचती रहती हूँ......ये मुझे क्या हो रहा है...?

ले बेटी....चाय....और जरा तैयार हो जा.

कहाँ जाना है....माँ?

अरे..... दीनानाथ की बिटिया अव्वल आई है ना....उसने बुलाया है....स्कूल वाले भी आ रहे हैं.

ओहो.....तो शायद इस दावत से बचने के लिए....साहब शहर निकल गए......

अच्छा माँ.....मैं अभी आती हूँ.

नमस्कार...प्रिंसिपल साहब.....

अरे...ज्योति बिटिया....कैसी हो? माता जी कहाँ हैं...?

मैं ठीक हूँ.....माँ...भी आईं हैं.

जरा दर्शन तो करवा दो......

हाँ, हाँ ....आइये.

माँ..... प्रिंसिपल साहब.

अरे नमस्कार प्रिंसिपल साहब ..कैसे हैं आप...? मुबारक हो ..... आप के स्कूल की बिटिया अव्वल आई है जिले में.

शुक्रिया.... माता जी. मुबारक तो आनंद को देनी चाहिए.

आनंद को......???

हाँ...सारी मेहनत  और दिशा दर्शन तो उसी का था.

माँ..मेरी तरफ देखने लगी.....मैं क्या बोलती.

अरे...माँ जी ...मिथिला  के साथ रात रात बैठ कर उसी ने तो उसको को पढाया.  आप से एक प्रार्थना करना चाहता हूँ.....आशा करता हूँ आप निराश नहीं करेंगी....

अरे...ऐसे क्यों कह रहे हैं.... निःसंकोच कहिये.

आप अगर ज्योति बिटिया से कह दे तो वो भी स्कूल में आ कर कुछ योगदान कर दें कुछ दिशा दर्शन कर दें.

हाँथ कंगन को आरसी क्या, पढे-लिखे को फ़ारसी क्या..... यहीं बात कर देती हूँ. ....ज्योति.....यहाँ आ तो बेटी.

क्या हुआ माँ....बेटी....प्रिंसिपल साहब कह रहे हैं...की अगर तू भी स्कूल जा कर कुछ पढ़ा दे....?

मैं........ थोड़ा सा टाइम दो ना माँ, सोचने के लिए......ये क्या....अब मैं क्या तय करूँ.....तय तो आनंद ही करेंगे...कल.

किसी तरह से रात कटी....सुबह हुई.... आंखे दरवाजे पर...... कब संदेशा आये...की आनंद आगये.....ओहो....अभी तो ९:३० ही बजे हैं.........दोपहर होने को आई....कोई समाचार नहीं......क्या हुआ....?

बिटिया......बाबूजी...कल रात को आगये थे.....काका ने समाचार दिया.....

कल रात को...............?

हाँ दीदी.......जब आप लोग दीनानाथ के घर गए थे, तब वो यहाँ आये थे...ये पर्चा दे गए आप के लिए.....

दो तो....." स्कूल ज्वाइन कर लो, तुम्हारी जरूरत है" शुभाकांक्षी .......आनंद.

मै सन्न रह गयी...........पढ़ कर. ये क्या.... सारा काम कर के गए...और माध्यम बनाया प्रिंसिपल साहब को.

माँ..मैं आनंद जीके घर जा रहीं हूँ....स्कूल के बारे मैं सलाह लेनी है....

ठीक..है..खाना खाने आजाना और उसको भी ले आना.

ठीक  है माँ..... मैं उड़ चली.....

तुम कल रात आ गए....मुझे खबर तक नहीं दी, तार मैं तो लिखा था की कल दोपहर मे आओगे.....तुम्हे पता है मुझे कितनी चिंता थी....१० बार तो काका को यहाँ भेज दिया....कुछ चिंता किसी की हो तो समझो........क्या करूँ मे तुम्हारा.....

बैठ जाओ, सांस ले लो, पानी पी लो ...फिर तीर चलाओ........... आनंद ने शांति से कहा. हाँ अब बोलो.....

क्या काम था शहर में.......जो बिना बताये चले गए......कल दीनानाथ के घर क्यों नहीं आये...?

अरे बाप रे......लड़की हो या टेप  रेकॉर्डर..?

जाओ...... बात मत करो.....

अरे बाबा....मेरा कुर्ता बचा कर गुस्सा थूक दो.....स्कूल तो ज्वाइन कर रही हो ना....

ना ज्वाइन करने की .....गुजाइश कहाँ छोड़ी हैं तुमने....मुझे हंसी आगई.

हाँ...अब ठीक है.....देखो....स्कूल को तुम्हारी और तुम को स्कूल की जरूरत है....घर पर खाली बैठ कर कितनी मक्क्खियाँ मार लोगी..? और खाली दिमाग  शैतान का घर भी होता है.  Post Graduate हो....तो अपना हूनर जाया क्यों कर रही हो....एक बार जब परिवार  की जिम्मेदारी कन्धों पर आ जाती है.....तो ज़िन्दगी सिलबट्टे में चली जाती है. जब तक यहाँ हो.....ज्वाइन कर लो.... उपयुक्त करो तन को.....

मैं एक बार फिर लाजवाब......

३ से साढ़े तीन हज़ार तक तनख्वाह होगी... चाचा जी की पेंशन ... माँ के हाँथ में दे दो..अपने खर्चे के लिए इतना तो काफी है.....बोलो हाँ की ना...?

मै निरुत्तर  आनंद की तरफ देखती रह गयी.....जो बात मैं ना सोच पाई.....वो इस इंसान के दिमाग में है.....आवारा मसीहा.

कब से ज्वाइन करना है.....

कल से......

अच्छा शहर क्यों गए थे......

दीनानाथ की बिटिया की छात्रवृति की बात करने.....

तो वो खुद नहीं जा सकता था.....

ज्योति...आज मिथिला अव्वल आई....तो स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ी....कल कुछ और बच्चे अगर स्कूल का नाम रोशन करते हैं..... तो चाचा जी का नाम रोशन होगा ....... चाची जी के लिए कितने गर्व की बात होगी....क्यों छोटी छोटी बातों पर मुँह फूला लेती हो.....मैं जानता हूँ दीनानाथ से तुम्हारी क्या नारजगी है.... उसने मेरा अपमान किया था.....अपने घर बुलाकर...यही ना.... तो ईश्वर ने उसका जवाब  उसको दे दिया ना.....मिथिला को अव्वल दर्जा दिला कर  .....तुम इतनी अच्छी हो...लेकिन कभी-कभी छोटी सी बात पर बिफर जाती हो......

आनंद...........you are too good.

अच्छा..... चलो.....चाय बना दो........मैं समोसे ले कर आया......

आनंद........आनंद .......आवारा मसीहा....आनंद

चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें......

चलो ज़िन्दगी को मुहब्बत बना दें.......


आजकल साहब बड़े मूड में हैं.........कहीं किसी  हँसीं  से तो पाला नहीं पड़ गया.........आज आनंद के साथ कई दिनों बाद घाट पर आई..... तो बिना कुछ पूंछे नाव वाले  को बुला लिया....और चल दिए.....boat-ride पर......कहने लगे कि लोग long drive पर जाते हैं.... हम आज long boat  ride पर चलते हैं.... ...लेकिन सच बोलूं.....तो मैं सपनो कि दुनिया में थी....शांत.... चारों तरफ माहौल शांत...ठंडी हवा.......और शबाब पर चांदनी.....आनंद आज पूरी तरह से गजलों के मूड में.......एक शब्द में अगर कहूँ...तो पूरा रोमांटिक माहौल.......

कुछ और बोलो......

क्या बोलूं......मैं इस माहौल को उतारने कि कोशिश कर रहा हूँ......

अगर हम कहें, और वो मुस्करा दें,
हम उनके लिए ज़िन्दगानी लुटा दें......

ज्योति.....दुआ करो...कि ये जो रिश्ता है...यूँ ही हरा-भरा बना रहे....विश्वास कि जमीन, और प्यार कि फुहारें..... कौन सा पौधा नहीं जम जायेगा......तुम ने रिश्तों को बनाने और बना कर निभाने.....कि आग में जिस तरह अपने आप को जलाया है.....वो मिसाल है...और इसिलए तो उस आग में  तप कर सोना बन गयी हो......तुम्हारी शान मे एक शेर पेश करूँ.....

इरशाद.....

तमाम जिस्म ही घायल था, घाव ऐसा था,कोई ना जान सका रखरखाव ऐसा था...
खरीदते तो खरीददार खुद ही बिक जाते, तपे हुए खरे सोने का भाव ऐसा था.

सरकार....आज इतनी मेहरबानी....?

ये कम है. ...एक गजल तुम पे लिखूं, वक़्त का तकाजा है बहुत.....

बस करो....आनंद. मैं और सम्हाल ना पाउंगी......

मैं भूला नहीं हूँ...ज्योति......अभी एक साल पहेली ही....जो , मैं तो हादसा ही कहूंगा, तुमने और चाची ने बर्दाशत किया है.....जब रमन  आकर रहा था तुम्हारे पास....और परिणाम.....

आते - जाते हर दुःख को नमन करते रहे,
उंगलियाँ जलती रहीं, और तुम हवन करते रहे.....

इसीलिए.....मैं बहुत इज्ज़त करता हूँ.....

चाहते नहीं हो...........?

क्या....... इज्ज़त करना....?

आनंद.....कितनी आसानी से नासमझ बन जाते हो तुम......लोग कहतें हैं कि तुम बहुत सीधे हो...

वो तो मैं हूँ....देखो जी....मैं चालाक नहीं हूँ.....ये इल्जाम नहीं लग सकता मेरे उपर कि मैं चालाक  हूँ.

हाँ...ये तो है......

ज्योति....
.सच्चा  प्रेम वही है, जिसकी त्रप्ति आत्मबली पर हो निर्भर,
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है, करो प्रेम पर प्राण निछावर.

आज सिर्फ आनंद को देखने का मन है......बहुत समय बाद आज आनंद ज़िंदा हुए हैं....मैं उनको रोकना नहीं चाहती नदी  कि तरह बहने दो उनको...आज ये खुल  रहे हैं.....देखतें हैं...इस खान में से मेरे लिए हीरा कब निकलता है.......

काफी देर हो गयी......भाई नाव घाट पर लगा दो....नहीं चाची....आज गाँव निकाला दे देंगी......

चलो...तुमको घर छोड़ दूँ.....

छोड़ दूँ........

तुम शब्दों के जाल में क्यों उलझाना चाहती हो मुझको.......

मैं.... शब्दों के जादूगर  तो तुम हो.......अभी तो मैं उस जादू से बाहर नहीं आ पाई हूँ....जो तुमने अभी बिखेरा है.

जादू शब्दों मे नहीं होता है....उन शब्दों को कहने वाले में होता है....लो और ये बात में किसको बता रहा हूँ...तुम तो खुद एक जादूगरनी हो...या कहूँ......


गुजरो जो बाग़ से तो दुआ मांगते चलो, जिसमे खिलें हो फूल वो डाली हरी रहे.....

सच कह रहे हो आनंद......

Tuesday, October 8, 2013

एक जरा सा दिल टूटा है, और तो कोई बात नहीं.....


भगवान् के  काम, समझ से बाहर के होते हैं. दुनिया बनाई, समझ मे आती है. लोग बनाये , समझ मे आता  है. दिमाग दिया, समझ मे आता  है. अब दिल बने की क्या जरूरत थी, ये बात मेरी समझ से परे है. अरे जब दिमाग दे दिया था तो उसी में कुछ ऐसा इंतजाम कर देता जो दिल का काम भी करता रहता था. वो तो बड़ा कारसाज़ है कर देता तो आज कितने लोग कितनी तकलीफों से बच जाते. दिल का दौरा नहीं पड़ता, दिल टूटा नहीं करते, लोगों को दिल से खेलने का मौक़ा नहीं मिलता. न दिल होता , न भावनायें होती, न संवेदनाएं होती. आदमी कितना सुखी होता. वफ़ा ये बेवफा जैसे अलफ़ाज़ ही ईज़ाद न हुए होते. न प्यार, न मुहब्बत, न नफरत -- कुछ नहीं. दुनिया कितनी सुंदर होती. न मंजनू होता, न रांझा.

खैर , अब इसके दुसरे पहलू को देखते हैं. अगर दिल बना ही दिया , तो फिर लोग भी  दिलदार होने चाहिये. आज के लोगों, जो दिल होने का दावा करते हैं, वो कहानी याद आती है, जब एक गीदड़ ने शेर की खाल पहन ली और अपने आप को शेर समझने लगा. आज के लोगों ने ईश्वर के घर को (दिल मे ईश्वर का निवास होता है) , तिजारत का सामन बना दिया, Business का सामन बना दिया, खेलने का खिलौना बना दिया, तोड़ने का सामन बना दिया, बस दिल को दिल ही  न बना पाये. लेकिन दावा पूरा है, की हमारे  पास भी दिल है......................  अपना दिल , दिल, दूसरे का दिल, पेप्सी का ग्लास - Use & Thorw.

अच्छा, भगवान् भी तो ऐसे लोगों का हिसाब रखता होगा? जैसी करनी, वैसा फल. आज नहीं तो निश्चित कल. ये मैने एक बस मे लिखा हुआ देखा था. लेकिन ये दिल के व्यापारी, खुश बड़े देखे हैं मैने. क्योंकि दिल एक ऐसी चीज़ है, एक ऐसी commodity है जिसके ग्राहक और खरीददार मिलते भी थोक में हैं. एक ढूँढो , मिलते हैं हजारों. ये दिलों के व्यापारी. ये एक खटमल - मच्छर  की तरह होते हैं. जो अलग - अलग लोगों का खून पीना पसंद करते  हैं. ये देखने मे काफी मिलनसार और मीठा बोलने  वाले होते हैं. हमदर्दी का मरहम हाँथ मे और आस्तीन मे खंजर छुपा कर रखते है. सर पे हाँथ फेरते हैं और पीठ पे वार करते है.

ये तो हुई बात उन लोगों की जिन के लिए दिल एक commodity है. अब जरा उन लोगों का हाल देखते हैं जो दिल को दिल मानते हैं. ऐसे लोग कम तादाद मे मिलते है. और ये लोग पिछडे  वर्ग मे गिने जाते हैं. इनको कुछ लोग दकियानूस के नाम से पुकारते हैं. ये लोग दुसरे के दिल के खातिर अपने दिल पे कुछ भी सहन करने के ताकत रखतें हैं. दुसरे की ख़ुशी की खातिर , अपनी खुशियों को कुर्बान करना, इन लोगों के बाएं हाँथ का खेल होता है. ये अपने दिल को पेप्सी का ग्लास, और दूरी को दिल को कांच का ग्लास समजने की गलती अक्सर करते है. इन लोगों की आंखे हमेशा  सूखी रहती है. दिल रोता है. ये लोग एक जोंक की तरह होते हैं, जिसको चिपक गये , चिपक गये. वहां से हटाया , तो मौत. और उस मौत को ये मौत नहीं मानते, कहते हैं की हम उनके दिल में तो ज़िंदा हैं. अरे भाई जिसके  दिल मे ज़िंदा होने की बात कर रहे हो, ये तो तय कर लो की उनके दिल है भी या नहीं. कहीं ऐसा तो नहीं की शेर की खाल मे गीदड़ हो.

तोड़ो, फेंको करो कुछ भी, दिल हमारा है, क्या खिलोना है...

Tuesday, August 27, 2013

पन्ने दर पन्ने ...ज़िन्दगी

सुंदर लाल चला गया।.......

ज्योति लौट कर आई तो देखा मेज पर  रखा हुआ लिफाफा ................सोचती रही क्या कर।..पढूं या न पढूं।....  चलो पढ़ कर देखने में क्या नुकसान है. 

उसने लिफ़ाफ़े में से ख़त निकाला......

प्रिय मित्र, 

काफी समय से तुम से मुलाक़ात नहीं हुई  और मैं तुम्हे भूल गया हूँ ऐसा भी नहीं...

तुम तो मेरे सुख दुःख के सहभागी रहे हो....तुमने मेरे जीवन के अनेक उतार चढ़ावों को देखा है. तुम तो जानते हो सुंदर...मैं कितना अपने लिए जिया हूँ...बस अब और नहीं. अब चादर समेट लेने का वक़्त आ गया लगता है. ...पिछले इक महीने से vomiting में खून आ रहा है.....लगता है चाय और चुरुट ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया है. गुस्सा मत होना वैद्य जी के पास गया था...65 मिनट उनके साथ था.....साठ मिनट डांट पिलाई और पांच मिनट दवाई.....खांसी बढ़ गयी है और ज्वर भी लगातार बना रहता है....थकान बहुत है. खाने पीने से मन हट गया है. सुंदर....जीवन मे एकाकीपन भरता जा रहा है......इतनी चोटें खाई है सुंदर की अब और चोट खाने की हिम्मत भी नहीं बची है......कोई नहीं है.....सब अपने काम से काम से लग गए हैं....और कोई किनारा कर चुका है......२ महीने हो गए हैं घर से निकला नहीं हूँ.......वैद्य जी कह रहे हैं की हवा पानी बदलने की लिए कुछ दिन पास के गाँव हो आओ.......

ज्योति......हाँ ज्योति....अब चोंको मत.....अच्छी है अपने घर परिवार में मस्त है व्यस्त है....२ महीने पहले देखा था.....कब तक वो भी मेरी देखभाल करे.....कोई बच्चा तो नहीं हूँ.....लेकिन सुंदर.....वो मेरी बहुत अपनी है......वो साथ रहती है तो हिम्मत बंधी रहती है.....एक हौसला सा बना रहता है...लेकिन कब तक वो भी साथ दे.....समाज के अपने कायदे क़ानून हैं.....लेकिन सुंदर...ये समझ में नहीं आया की बिना कारण बताये या जुर्म बताये किसी को सजा देना क्या ठीक है....और वो भी उसको जो उसके उपर निर्भर हो.....वो भी पूरी तरह से.....शायद ठीक हो......पता नहीं सुंदर.....मैं इतना दुनियादार्री तो नहीं जानता हूँ....किसी को अपना मानता हूँ तो वो तुम हो और ज्योति......

पिछले महीने स्कूल का वार्षिक समारोह था..तबीयत ठीक ना होने की वजह से जा नहीं पाया....संपत राम आया था समारोह की तस्वीरें लेकर. ज्योति को उसमे देखा..वो बहुत सुंदर लग रही थी.....सुना सारे कार्यक्रम की बागडोर ज्योति के हाँथ में थी...मैं बहुत खुश हूँ...... लेकिन इजहार करना मैं ना सीख पाया....तुम्हारी अगर ज्योति से मुलाक़ात हो.....और 
हमारी बेखुदी का हाल वो पूंछे अगर,
तो कहना होश बस इतना है की तुमको याद करते हैं...

तुमको मेरे घर के पीछे वाली खिड़की तो याद होगी......जहाँ से घर के पीछे का खुला मैदान दिखाई पड़ता था.....दूर तक धूप ही धूप और एक नीम का पेड़...और मैदान से गुजरती हुई रेल की पटरी......सुंदर...मेरा जीवन भी उसी मैदान की तरह हो गया सूखा नीरस......और मेरे हृदय पर धड़ा धड़ा धड़ा धड़ा चलती हुई  रेल जो दिल को छलनी करती हुई चली जाती है और फिर देर तक सन्नाटा , सूनापन........

सुंदर कभी कभी अफ़सोस होता है की मैं अपने लिए क्यों नहीं जिया ....शुरू से ही , जीवन की शुरुआत से ही......कुछ ढूंढता रहा......

एक चेहरा साथ साथ रहा पर मिला  नहीं, 
किसको तलाशते रहे कुछ पता नहीं.....

ज्योति के साथ वो रिक्तता पूरी सी हो चली थी......जीवन मे रस और रंग दोनों का ही समावेश हो रहा था...लेकिन विधि ...उसको तो कुछ और ही मंजूर था....

जिसको तुम पूंछते हो , वो मर गया फ़राज़,
उसको किसी की याद ने ज़िंदा जला डाला
..............

बहुत तकलीफ है, सुंदर....दर्द बहुत है.....

उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ, 
हमें यकीं था हमारा कसूर निकलेगा. 

अब वक़्त-ए- रुखसत आ चला है........मालिन माँ की चिंता है.....बहुत परेशान है मुझको लेकर.....मुझसे कह रही थी की मैं ज्योति से बात करूँ क्या.....

मैंने मना कर दिया.......

मिली मुझे जो सजा वो किसी खता पे न थी फ़राज़,
मुझे पे जो जुर्म साबित हुआ वो वफ़ा का था।...

पन्ने दर पन्ने ...ज़िन्दगी 

Tuesday, August 13, 2013

एक रुका हुआ फैसला है ..........

बहुत दूर चला गया था  आप से निकल के सोचा था की कभी नहीं लौटूंगा .... कभी नहीं .......चलता रहा ..... कभी थका तो ठहर के आराम किया ...... लेकिन पीछे देखा तो काँप गया .......भीड़ ........ ग़मों की, यादों की, जख्मों की , दर्द की , मिलने की , बिछुड़ने की ……. और हाँ ...धोखों की, अपनों की ......

आज भी जब सोचता हूँ तो नहीं समझ पाता  हूँ ...... की कैसे कोई साथ छोड़ देता है. ..... क्या ये संभव है.

नहीं ...नहीं जरूर संभव होगा तभी तो ऐसे वाकयात होते है।

लेकिन ......

नहि…… अब ये लेकिन के तीर अपने तरकस में ही रहेने दो.

और ज्योति….

मुस्करा के रह गया लेकिन बातों को मोड़ने के फन में तो  माहिर है.

मुझको जिन्होंने कत्ल किया है , कोई उन्हें बतलाये नजीर 
मेरी लाश के पहलू में वो अपना खंजर भूल गये. 

मतलब .......

ये लो ....

ये क्या है .....

खंजर .....है.

मुस्करा लेते हो .......इतने दर्द में भी ..?

अरे .... अपनों से भी कहीं दर्द मिलता है…। बोलो तो. अपनों से तो सौगातें मिला करती हैं .

और ये दर्द ....?

सौगात कहो ....पगले ..दर्द तो गैरों से मिला करते हैं .

क्या कोई गैर है तुम्हारे लिए ......?

नहीं ....इसीलिये  तो मुझे दर्द नहीं होता ...

तुम पागल होते जा रहे हो…।

लो .... यहाँ पर भी अपनी सोच को ठीक करो ..... जिसको तुम पागलपन समझते हो .... मुहब्बत के बाज़ार में इसको कीमत कहते है। .....

एक लम्हे में कटा है मुद्दतों का फासला, 
मैं  अभी आया  हूँ कुछ तस्वीरें  पुरानी देख कर. 

हाँ ...... मैं  इतेफाक रखता हूँ आप से.

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है, 
हम तो उसदिन राय देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे ...... 

सुनो ..... मैं एक एसोसिएशन बना रहा हूँ ......

एसोसिएशन ......????/

हाँ ....

कौन सी .....

आल इंडिया बेवफ़ा  एसोसिएशन .....

उनको मेम्बर बना लूँ ......

फिर पागलपन .....

क्यों ...... अब ऐसा क्या कह दिया मैंने .....

अरे .... वो तो इसके president  होंगे .....

फिर देर क्यों ....???

एक रुका हुआ फैसला है ..........

एक दिन तो होगा ही .....

Sunday, July 28, 2013

अब बारी तुम्हारी.....

अब बारी तुम्हारी......

तुम्हारे शब्द जादू करते हैं.....तुमको पता है.....नहीं...तुमको पता नहीं होगा....आँख कब अपने आप को देख पाती है.
अगरबत्ती तो एक कोने में जलती है.....घर पूरा महकता है.....मुहब्बत वो खुशबू है....वो एहसास है....जो अनदेखे, अनजानों को महबूब बना देती है.....वो ताकत है ये ....प्यार....अब तो मान जाओ.

तुम्हारे एक-एक शब्द में मैं अपने आप को पाता हूँ....और मेरे एक-एक शब्द में तुम अपने आप को महसूस कर सकती हो.....क्योंकि  मैं कल्पना के पंख लगा कर सपनों कि दुनिया मे नहीं जीता.....सिर्फ जो महसूस करता हूँ...लिख देता हूँ. मुझे  नहीं पता साहित्य  क्या होता है....मैं अपने आप को तुमसे जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ.....कहीं ना कहीं.......या जुड़ता हुआ....कितना अच्छा हो...कि ना तुम मुझे देखो...और ना मैं तुमको....पर फिर  भी एक इंतज़ार बन जाए......एक बेकरारी पैदा हो जाए.....अगर कोई सन्देश ना आये, तो गुस्सा भी आये....जबकि...अनदेखे  हैं हम....वो हो सकता है..सिर्फ प्रेम हो...प्रेम के अलावा कुछ  भी नहीं....जिस्म और देह के बंधन से परे.....क्या यही प्यार है.....बोलो तो....बोलो ना.

जहाँ पर ओपचारिकता ना हो......"जी" कहने की, ना धन्यवाद  कहने की...एक बार मेरा नाम , बिना "जी" लगा कर लो तो  ...बोल के देखो.....मुझसे नहीं....तो अपने आप से ही सही.....सारी ओप्चारिक्ताओं को ताक पर रख कर..... तुम्हारा हृदय बहुत कोमल है.....और हो भी क्यों ना......प्रेम की तरंगे सागर मे ही तो उठती हैं....पत्थरों  में नहीं.....मै एक बार डूब  के देखूं ...इस प्रेम के सागर में......अथाह और अगाध समुद्र में.......

खुसरो दरिया प्रेम का, वाकी उल्टी धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूब गया सो पार.

मुझको याद आता है Richard  Bach  का वो कथन " Can miles truly separate you from the person you love....If  you want to  be with someone you  love , aren't  you already  there " ..... दूरियां कब प्रेम को कम कर पायीं हैं.....उलटा ही हुआ....दूरियों ने प्रेम की आग को और हवा दी है.....देख रही हो ना प्रेम की जादूगरी....ये प्यार ही तो है...जो बुत को ख़ुदा बना देता है......और इन्तेहाँ  ये है की ... बन्दे  को ख़ुदा करता है इश्क.....कोई शक....?

अच्छा...नहीं मानती हो........

तुम झूठ बोलती हो......कम से कम अपने आप से तो मत बोलो.

मुहब्बत की आग जलाती नहीं...निखारती है......ज्यों - ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जवल  होए. 

बहुत कुछ कह दिया ना मैने.......नहीं...सब कुछ तो कह दिया.....अब क्या रहा मेरे पास.....छुपाने को, बताने को....

अब बारी तुम्हारी.....