आपने पहाड़ी नदी देखी है ? जरूर देखी होगी।
लेकिन कभी किसी टूरिस्ट प्लेस से हटकर जंगल में बहती हुई नदी सुनी है ?
Excuse me ! बहती हुई सुनी है ! मतलब।
जी हाँ पानी के बहने की आवाज़। चट्टानों के बीच ऊपर से नीचे गिरते हुए पानी की आवाज़ ! जिसको तमाम लेखक और कवि कल-कल , छल -छल कह के सम्बोधित करते आये हैं। ऑफिस का काम , शाक भाजी लेने का दबाव , ऑफिस से लौटते हुए शाम की चाय के साथ गरम गरम समोसे खाने की फ़िक्र वग़ैरह वग़ैरह। अरे इन सब को छोड़ कर कुछ दिन प्रकृति के साथ बिताने आओ , अपने आप से मिलने के लिए आओ , अपने आप से बात करने के लिए आओ , शांति और ठहराव क्या होता है , आओ उसे अनुभव करने के लिए आओ। पुराने ज़माने में ऋषि मुनि यूँ ही हिमालय में नहीं वास करते थे। कुछ न कुछ कारण होता था , आओ उस कारण को ढूंढने के लिए आओ।
ऊपर जो कुछ भी मैंने लिखा है उसकी सत्यता जाँचने के लिए आओ।
चीड़ के जंगल में चीड़ के पेड़ों से बहते हुए तेल की सुंगध जब हवा में घुलकर बहती है तो वो अद्भुत होता है। जब बुरांस के पेड़ नहीं नहीं बुरांस के जंगलों में बुरांस के लाल लाल फूल खिलते हैं तो किसी शराब से कम नहीं होते।
ख़ैर , बात शुरू हुई थी कि अभी कितना चलना बाकी है। और मैं ये कभी तय नहीं कर पाया। जहाँ चलने के लिए निकलता हूँ वहाँ पहुँच कर सोचता हूँ कि अब ? सितारों से आगे जहाँ और भी हैं। यात्रा चाहे अंदर की हो या बाहर की, होती अनंत की ओर ही है।
हमने जा कर देख लिया है राह गुज़र के आगे भी ,
राहगुज़र ही राहगुज़र है राहगुज़र के आगे भी।
होता क्या है न कि हम अपनी बनाई दुनिया में इतने डूब जाते हैं कि हमें कहीं जाना भी है ये तक भूल जाते हैं। आए कहाँ से इसका तो इल्म ही नहीं है। बा ख़ुदा। घर की तो याद भी नहीं आती।
अपनी बनाई दुनिया?
जी , चौंकिए मत। अपनी बनाई दुनिया ने ही हमें मार डाला है।
मुआफ़ कीजिएगा। बात समझ में नहीं आई।
देखिये ख़ुदा ने एक दुनिया बनाई , ठीक है।
जी
हमको इस दुनिया में भेजा। और तमाम लोगों को भेजा। कई रिश्ते बनाए। माँ का, बाप का, भाई का, बहन का , दोस्त का , पति का पत्नी का , माशूक और माशूक़ा का वगैरह वगैरह। ठीक है ?
जी
हमने इस सामजिक रिश्तों के इर्द -गिर्द अपनी दुनिया बना ली। और इसी में डूब गए। और फिर तमाम जरूरियात को पूरा करने के लिए काम किया , पैसा कमाया , शादी , बच्चे , बच्चों की लिखाई पढ़ाई , बच्चों की शादी वगैरह वगैरह। ठीक है ?
जी
ये हमारी अपनी बनाई हुई दुनिया है।
लेकिन ये जरुरी भी तो है।
जी नहीं।
मतलब ये जरुरी नहीं बल्कि निहायत जरुरी है।
फिर ?
जी अब आती है मसले की बात। अपनी और घर वालों , समाज की तमाम जरुरियातों को पूरा करते करते हम ये समझ बैठे कि हम सबके कर्ता धर्ता हैं।
तो गलत क्या है ?
आगे जारी है.........