Tuesday, July 17, 2012

अंजू बैनर्जी ...

अंजू बैनर्जी ....नाम ही तो है।

..जी हाँ नाम ही तो है, लोगों के लिए ये सिर्फ एक नाम ही तो है।......बताईये  अब सिर्फ एक नाम के उपर भी कुछ लिखा जा सकता है......?

जी नहीं.........

क्यों नहीं.........

कभी जाड़ों की रात में  गहरे नीले रंग के आसमान पर  चमकते हुए टिमटिमाते हुए तारों को देखा है......या उसी आकाश में  दूध सा सफ़ेद  चमकता हुआ चाँद देखा है ..................

गुलाब के फूलों को हवा कभी लचकते हुए कभी हुए डोलते देखा है।......गुलाब की पंखुरी हवा में  एक कामायनी की तरह इधर उधर उड़ती  हुई देखी  है।....


कभी सुबह सुबह बारीश से भीगी हुई जमीन पर  हरसिंगार के फूलोँ की चादर देखी  है।..... 


किसी पहाड़ी  नदी का अल्हड़पन देखा है।.......


कभी पास से गुजरी ताजा हवा का झोंका जो अभी अभी बेला के फूलों को छू  कर आया हो .......महसूस किया है।.....


जी ....कुछ कहा आपने।.......


अतिशोक्ती .......ज्यादा हो गयी।.....


नहीं हुज़ूर नहीं।.......आप ने देखा ही नहीं .....अंजू बैनर्जी को। 


आपने........सुबह की ताज़ी ओस की बूँद पर सूरज की पहली  किरन .........देखी  होगी।..उससे झिलमिलाते हुए सतरंगी रंग।


हवा में  उड़ता हुआ उसका दुपट्टा .......जब चेहरे को छूता हुआ निकलता है तो ऐसा लगता जैसे बारिश की बूंदे चेहरे को भिगोती हुई हवा के साथ उड़ रहीं हों।...


अंजू बैनर्जी...............

बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम , हमारे ग़म  नहीं बदले,
तुम अगले जन्म में  हम से मिलोगी तब तो मानोगी,
 जमाने और सदी की इस बदल में  हम नहीं बदले। ..................................जारी है।