Wednesday, February 8, 2012

.जारी है....कहाँ गए वो दिन....

सब्जी मंडी तो अब लगती ही नहीं.....नहीं तो वो भी दोस्तों से मुलाकात का एक अड्डा हुआ करता था...वो दिन नहीं रहे जब हम जो थे वही हुआ करते थे....अब तो हमको भी रूप भी अवसर के हिसाब से धरने पड़ते हैं....और उस पर नपी तुली मुस्कराहट...नपी तुली.....किसी को देखकर अगर ज्यादा मुस्करा दिए ...तो सफाई दीजिये....

ज्योति...तुम को नहीं लगता की Just be who you are बहुत कठिन चीज़ है...बहुत ही कठिन....और उनके लिए तो और भी मुश्किल जो अपने अंदर बड़े-बुजुर्गों से संस्कार ले कर आये है....लो ये शेर सुनो.....

दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले, 
हम अपने बुजुर्गों का जमाना नहीं भूले. 

या....

जो भी दौलत थी वो बच्चों के हवाले कर दी, Publish Post
जब तलक मैं न बैठूं, वो खड़े रहते हैं. 

अभी इस को चलने देना.......रुकने को मत कहना...................जारी है....कहाँ गए वो दिन....

Tuesday, February 7, 2012

कहाँ गए वो दिन....

ज्योति तुम्हें याद है वो दिन....जब माता- पिता के घर में रहते थे..साधारण सा घर....सब का स्वागत करने के लिए खुला हुआ दरवाजा, हवा से उड़ता हुआ पर्दा....अगर घर में कालीन बिछ  गया तो मतलब कोई ख़ास आने वाला है....उसी कालीन के उपर खेलते हुए बच्चे,  माँ की जोर से आती हुई आवाज़....देखो कालीन पे पानी गिर जायेगा....दरवाजे के पास पड़ी हुई आरामकुर्सी....राम राम भाई साहब ..कहते हुए आते-जाते हुए लोग...अरे शर्मा जी ......आओ भाई.....पिता जी का अपने मित्र को बुलाना.....और फिर माँ से एक प्यार भरी गुजारिश की देखो शर्मा जी के लिए एक कप चाय बन सकती है क्या........ये भी अंदाज होता था ...ज्योति...बात कहने का. सीधे नहीं कह सकते थे की उनको चाय चाहिए....पिता जी इस गुजारिश पर माँ का झुन्झुला जाना...और फिर लीजिये..चाय...कहते हुए सफ़ेद चीनी मिटटी के कप में सांवली सी चाय.....कहाँ गए वो दिन....

घर तो अब भी हैं....परदे भी आदमी भी..लेकिन इंसान नहीं मिलता है....वो छेड़छाड़ नहीं मिलती....वो चुहलबाज़ी  नहीं होती....जादे के दिनों में रजाई में पाँव पसार कर....चाय और पकोड़ी....कि मांग अब नहीं होती....और अब भाभी से मजाक नहीं होता.......                                            
                                                                                                                          जारी है.....

Sunday, February 5, 2012

मेरा आवारा मसीहा........

अरे ज्योति बिटिया......

कौन है......अरे मालिन माँ तुम...आओ....बैठो.................लो पानी पियो....ये गुड ले लो. 

ला बिटिया....पानी दे दे...गुड रहने दे.....

क्या बात है ....मालिन माँ.....कैसे आना हुआ..? कहाँ हैं साहब...? 

कौन साहब.....??? बिटिया....

अरे....आनंद.....और कौन....

क्या बताऊँ..बिटिया....

क्यों......सब ठीक तो है न मालिन माँ....

सब ठीक है......बिटिया ...मालिन माँ की एक फीकी से हंसी....

मुझे खुल कर बताओ.....मालिन माँ...

बिटिया.....तू तो आनंद को काफी वक़्त से जानती है न......कभी तू ने आनंद को ऐसी हालत में देखा है.... वो रोना चाहता है...रो नहीं सकता, वो बोलना चाहता है, बोल नहीं सकता....बांटना चाहता है...बाँट नहीं सकता....वो घुट रहा है...ज्योति बिटिया ...वो घुट रहा है....मैंने उसको बचपन से देखा है.....वो ओरों का दर्द बांटने वाला इंसान है....बिटिया ......अब तो बस गुमसुम रहता है....पता नहीं क्या बात खाए जा रही उसको......इतना शौकीन इंसान था....वो बाते करने का, गाने-गुनगुनाने का.....हंसने - हंसाने का.... वो खत्म हो रहा है....वो घुट घुट के खत्म रहा  है...बिटिया.....बहुत गहरी चोट खाई है उसने......

आप को कुछ पता है..मालिन माँ की क्या हुआ है.......आनंद को.

मुझे कैसे पता होगा..बिटिया. कल पूंछा था ...की क्या बात है बेटा क्यों इतना गुमसुम रहता है आजकल....

क्या...क्या ...जवाब दिया उन्होने.....

तू तो उसका तरीका जानती है बिटिया......खिलखिला कर हँस पड़ा.....कहने लगा कौन गुमसुम रहता है...माँ. अगर उसको जवाब नहीं देना है....तो कौन उससे जवाब निकलवा सकता है.....तू बता.

जानती हूँ...मलिन माँ.

और एक बात जानती है बिटिया.......आनंद वो इंसान है......कमला को तो तू जानती हैं न.....मेरी बेटी....

हाँ हाँ....जानती हूँ....

अरे जब उसके आदमी की तबियत खराब थी.......तो तीन महीने तक.....वो काम पर नहीं जा पाया....तीन महीन १५०० सौ रुपए हर महीने वो घर पर दे कर आता था.....और कमला को हिदायत थी की किसी को कुछ नहीं बताये.....मुझे भी अभी कुछ दिन पहले ही पता चला.....ज्योति बिटिया क्या तुझे आनंद एक धोखेबाज़ इंसान लगता है.....

नहीं ....माँ.....नहीं.....क्यों..........

पता नहीं.....एक  दिन अपने आप से बात कर रहा था......

क्या बात कर रहे थे....

मैं तो उसकी भाषा समझ नहीं पाती हूँ बिटिया.....कह रहा था....

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हो मुमकिन है,
हम तो उस दिन राय देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे.

क्या बताऊँ मालिन माँ को आनंद की बात करने का अंदाज या तरीका...... वो कह तो देते हैं सारी बात, अपने दिल की बात..लेकिन कोई उसको समझने वाला नहीं होता.....

तू उससे बात करके देख न बिटिया.......लेकिन तू भी तो व्यस्त रहती है.....घर में और स्कूल में.....

मैं बात करुँगी...माँ.....आप परेशान न हो.......

कैसे परेशान न हूँ...बेटी....

मैं कैसे कहूँ.....माँ ...जो चोट उन्होने खाई है......और उसके बाद भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ा...बल्कि जिनकी जिम्मेदारी उन्होंने उठाई है.....उनके सामने, उनके लिए एक चट्टान बन कर खड़े हैं...आनंद.

बिटिया...कहाँ खो गयी......

कहीं नहीं माँ.....सोच रही थी की वक़्त कैसे कैसे खेल खिलाता है......

हाँ बिटिया...आनंद अब नाम का ही आनंद रह गया है.....

माँ....आनंद फिर से लोटेंगे .... ईश्वर पर भरोसा रखो......

बिटिया.....ईश्वर को तो मैंने  नहीं देखा.... मैं तो इतना जानती हूँ.....की वो किसी बड़ी परेशानी से गुजर रहा है....कल उसने दीनानाथ की बिटिया को साइकिल उपहार मैं दे दी....उसका जन्मदिन था न.....

अच्छा......

तू कब से नहीं मिली उससे बिटिया.....

काफी समय हो गया......स्कूल में भी आजकल वक़्त नहीं मिल पा रहा है......

वो भी...अपने आप को मशीन बनाने पर तुला हुआ है.....पता नहीं ......बिटिया मुझको लगा की तू उसको समझती है...सो तुझे बता दिया.....सम्हाल ले अपने आवारा  मसीहा को......उस निर्मोही को....

मेरा आवारा मसीहा........